Wednesday, May 8, 2024
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चंपावती : असमिया लोक-कथा

Champawati : Lok-Katha (Assam)

किसी समय में एक अमीर आदमी रहा करता था। उसकी दो बीवियाँ थीं। बड़ी वाली लागी (पसंदीदा) थी और दूसरी छोटी वाली अलागी (जिसे दूर कर दिया गया हो) थी। दोनों बीवियों की एक-एक बेटी थी। बड़ी बीवी के बार-बार कहने और लड़ाई-झगड़ा करने पर पति ने दूसरी बीवी और उसकी बेटी के रहने के लिए घर के पिछवाड़े में एक झोंपड़ी बनवा दी। अलागी अपनी बेटी के साथ गरीबी में अपना जीवन गुजारने लगी। उसकी बेटी का नाम चंपावती था। एक दिन पिता ने चंपावती को आदेश दिया कि वह जाकर उसके धान के खेत की रखवाली करे। वह हर रोज एक ऊँचे स्थान पर बैठकर खेत की रखवाली करती और चिड़ियों को उड़ाती रहती। इसी तरह कई दिन गुजर गए। एक दिन धान की रखवाली करने के लिए जब वह उस ऊँचे स्थान पर चढ़ी तो उसने गाना गाना शुरू कर दिया—

“बटेरो, यहाँ से चली जाओ, मेरे धान को मत खाओ
उसके बदले मैं तुम्हें भुना हुआ चावल दूँगी।”

जब उसने ऐसा कहा तो जंगल में से किसी का जवाब आया—

“मैं तो धान खाऊँगा और चावल भी
मैं चंपावती से शादी करूँगा और उसे अपने घर ले जाऊँगा।”

यह सुनकर हैरानी से चंपावती ने इधर-उधर देखा, पर उसे वहाँ कोई नजर नहीं आया। शाम को घर लौटकर चंपावती ने अपनी माँ को सारी बात बताई। अगले दिन उसकी माँ भी उसके साथ खेतों पर गई कि क्या वास्तव में ऐसा हुआ था। उसकी माँ ने चंपावती को वही गाना गाने को कहा। जैसे ही उसने गाना गाया, जंगल से वही उत्तर आया। उसकी माँ को इतना आश्चर्य हुआ कि उसने चंपावती को फिर से गाना गाने को कहा और फिर वैसा ही जवाब उन्हें मिला। माँ और बेटी, दोनों घर लौट आईं। अलागी ने इस बारे में अपने पति को बताया। तब अगले दिन वह, अलागी, चंपावती और कुछ पड़ोसियों के साथ खेत पर गया। जब चंपा से गाने को कहा गया तो उसने वैसा ही किया। फिर से वही जवाब आया। जवाब कौन दे रहा है, यह जानने के लिए वे सब जंगल में गए, पर वहाँ उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया।

उसके बाद चंपा के पिता ने जंगल की तरफ देखते हुए कहा, “अगर तुम सच में चंपावती से शादी करना चाहते हो तो हमारे सामने आओ। मैं वादा करता हूँ कि उसके साथ तुम्हारी शादी कर दूँगा।” यह सुनकर एक विशालकाय अजगर बाहर निकला। लोग उसे देख डरकर भागने लगे, पर चंपा के पिता ने उन्हें समझया कि डरें नहीं, यहीं रुके रहें तो वे सब वापस आ गए। उसने अजगर को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। अलागी और उसकी बेटी, दोनों जोर-जोर से रोने लगीं। अलागी ने अपने पति से विनती की कि वह चंपावती की शादी अजगर से न करे, पर लागी की सलाह पर उसने अजगर से चंपावती की शादी कर दी और अपनी पत्नी, बेटी और दामाद के रहने के लिए एक नए घर की व्यवस्था भी कर दी।

लागी यह सोचकर बहुत खुश हुई कि अब रात को अजगर चंपावती को निगल लेगा। अजगर को चंपावती के साथ एक ही कमरे में रखा गया। यह सोचकर कि अब वह उसे निगल लेगा, चंपावती ईश्वर से प्रार्थना करने लगी। अगली सुबह उसकी माँ घबराई हुई जब चंपावती के कमरे में गई तो देखा कि उसकी बेटी तो सोने के आभूषणों से सजी हुई है, पर अजगर उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। जब माँ ने बेटी को जगाया तो स्वयं को सोने के आभूषणों से सजी देख उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। यह सोचकर कि अब तक तो अजगर चंपा को निगल गया होगा, जब पिता अपनी बड़ी पत्नी के साथ वहाँ आया तो उसे सोने के आभूषणों से चमचमाते देख हैरान रह गया। यह देखकर लालची लागी को बहुत ईर्ष्या हुई और उसने अपने पति से जिद की कि वह उसकी बेटी के लिए भी अजगर को लेकर आए।

तब वह बहुत सारे आदमियों को लेकर घने जंगल में अजगर को ढूँढ़ने निकल गया। उन्हें एक अजगर मिला तो वह उसे घर ले आया। लागी ने भी अपनी बेटी की शादी उससे कर दी। चंपावती की तरह उसकी बेटी को भी अजगर के साथ सोने के लिए भेज दिया गया। लागी पूरी रात यह सोचकर खुश होती रही कि अब उसकी बेटी भी सोने के आभूषणों से लद जाएगी।

सोने के बजाय वह पूरी रात उनके कमरे के बाहर ही बैठी रही।

लेकिन अजगर ने तो पैरों की तरफ से उसकी बेटी को निगलना शुरू कर दिया।

बेटी ने कमरे के अंदर से अपनी माँ से कहा, “माँ, मेरे पाँव में गुदगुदी हो रही है।”

माँ ने बाहर से जवाब दिया, “मेरी बच्ची, मेरा दामाद तुम्हें पाजेबों से सजा रहा है।”

धीरे-धीरे अजगर उसकी कमर तक पहुँच गया। तब बेटी बोली, “माँ, मेरी कमर में गुदगुदी हो रही है।”

माँ बोली, “मेरी बच्ची, मेरा दामाद तुम्हें कमरबंद पहना रहा है।”

उसके बाद अजगर उसकी छाती तक पहुँच गया तो बेटी बोली, “माँ, मेरी छाती में गुदगुदी हो रही है।”

माँ ने जवाब दिया, “मेरी बच्ची, मेरा दामाद तुम्हें शॉल पहना रहा है।”

जब अजगर उसकी गरदन तक पहुँचा तो वह बोली, “माँ, मेरी गरदन में गुदगुदी हो रही है।”

माँ बोली, “मेरी बच्ची, मेरा दामाद तुम्हें मोतियों की लड़ियों से सजा रहा है।”

जब अजगर उसके सिर तक पहुँचा तो बेटी की आवाज आनी बंद हो गई। माँ ने सोचा कि आभूषण पाकर मेरी बेटी खुश हो गई है और सो गई है। यह सोचकर वह भी खुशी-खुशी सोने चली गई। सुबह वह दौड़ी-दौड़ी अपनी बेटी के पास आई, पर उसे वह कहीं दिखाई नहीं दी। अजगर बड़े आराम से वहाँ लेटा आराम कर रहा था। अलगी की बेटी को निगलने के बाद उसका पेट फूला हुआ था। यह देख उसे एहसास हुआ कि क्या हुआ है और वह दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुन पति दौड़ा-दौड़ा आया और पूछा कि क्या हुआ? जब उसे सच का पता चला तो वह सिर पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गया। अलागी और चंपावती भी रो रही थीं। सारे गाँववालों ने पति-पत्नी का बहुत मजाक उड़ाया और उनके लालच पर उन्हें धिक्कारा। सब लोगों ने मिलकर बेटी के शव को अजगर के पेट से बाहर निकाला और उसका दाह-संस्कार कर दिया।

उसके बाद तो लागी और उसके पति को अलागी और चंपावती से इतनी नफरत हो गई कि वे दोनों उनसे पीछा छुड़ाने का तरीका सोचने लगे। एक दिन वे अपने हथियारों के साथ उन्हें जबरन घसीटते हुए जंगल में ले गए। उन्हें बेहोश कर वे उन्हें मारने ही वाले थे कि तभी एक अजगर वहाँ आया और उसने उन दोनों दुष्टों को निगल लिया। अजगर ने बेहोश माँ-बेटी को उठाया और जंगल में ले गया। अगले दिन जब वे उठीं तो रोने लगीं। एक अनजान जगह पर उन्हें डर लग रहा था।

अजगर उन्हें दिलासा देते हुए बोला, “तुम दोनों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें यहाँ लाया हूँ।” फिर उसने रात की घटना उन्हें बताई। सच जानकर दोनों ने कृतज्ञता प्रकट की। उसके बाद से तीनों खुशी से जंगल में ही रहने लगे। कुछ दिनों बाद अलागी अचानक बीमार पड़ गई और उसकी मृत्यु हो गई। चंपावती अकेली रह गई।

एक दिन जब अजगर बाहर गया हुआ था, तब एक बूढ़ी स्त्री वहाँ आई। चंपावती ने लंबे समय से किसी मनुष्य को नहीं देखा था। उसने बहुत सम्मान के साथ उस स्त्री का स्वागत-सत्कार किया। तब उस स्त्री ने उसकी सेवा से खुश होकर बताया, “जो अजगर तुम्हारा पति है, वह असल में एक देवता है। वह हर रात, तुम सो गई हो या नहीं, यह देखने के लिए तुम्हें चुटकी काटता है और फिर अपने अजगर का चोला उतारकर स्वर्ग में चला जाता है। वहाँ कुछ समय वह अन्य देवताओं के साथ व्यतीत करता है। अगर तुम अपने पति को देवता के रूप में देखना चाहती हो तो रात को सोने का नाटक करना, पर सोना मत। जब वह अपना चोला उतार स्वर्ग जाए तो तुम उसके चोले को आग में जला देना। जैसे ही तुम उसका चोला जलाओगी, उसे अपने बदन में जलन का एहसास होगा। तब तुम तुरंत पंखा कर देना और उसे आराम करने देना। जल्दी ही उसे नींद आ जाएगी। सुबह तुम उसे माला पहनाकर उसका अभिवादन करना। तुम्हारा पति ही है, जो अजगर के रूप में तुम्हारे सामने आता है।”

यह बात सुन चंपावती की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने उसे घड़ा भरकर सोना और चाँदी दिया। उसने वैसा ही किया जैसा कि बूढ़ी स्त्री ने बताया था और उसके बाद वे कई महीनों तक सुखमय जीवन बिताते रहे। एक दिन जब उसका पति घर में नहीं था, तब वही बूढ़ी स्त्री फिर आई। चंपावती ने उसका स्वागत करने के बाद उसके आने का कारण पूछा। वह चालाकी से बोली, “मैं तो तुम्हारी भलाई के लिए ही यहाँ आई हूँ। कल दोपहर तुम अपने पति से एक ही थाली में अपने साथ खाना खाने को कहना। जब तुम दोनों एक साथ खाना खाओगे तो वह तुम्हारे आकर्षण में इतना बँध जाएगा कि फिर कभी एक भी पल के लिए तुमसे अलग नहीं होगा। जब तुम खाना खा लो तो उससे कहना कि तुमने उसके मुँह के अंदर बहुत सारे गाँवों को देखा है। तब तुम उससे पूरा मुँह खोलने के लिए कहना, ताकि पूरी दुनिया को तुम देख सको। वह तुमसे नाराज होगा और कहेगा कि तुम उसे या पूरी दुनिया में से किसी एक को चुन लो, पर तुम कहना कि तुम दुनिया को देखना चाहती हो। वह अपना मुँह खोलकर तुम्हें पूरी दुनिया दिखा देगा और फिर एक नदी में चला जाएगा। वह तुमसे कहेगा कि वह तुमसे अब छह महीने बाद मिलेगा, पर उसकी बातों में मत आना। तुम नदी के तट पर बैठी रहना। कुछ क्षण बाद तुम उसे वापस आते देखोगी।”

यह सुन चंपावती ने पहले की ही तरह उस स्त्री को सोना-चाँदी देकर विदा किया। अपनी धूर्तता पर प्रसन्न होते हुए वह बूढ़ी स्त्री वहाँ से चली गई। अगले दिन चंपावती अपने पति के साथ एक ही थाली में खाना खाने बैठी। उसके पति ने कहा, “तुम आज कुछ अजीब व्यवहार कर रही हो, तुम्हारे इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं।”

खाना खाने के बाद उसने अपने पति से पूरी दुनिया दिखाने को कहा तो वह बोला, “फिर तुम मुझे कभी नहीं देख पाओगी।” पर वह तो अपनी जिद पर अड़ी थी। तब हारकर पति नदी के पास गया और उससे पूछा, “दुनिया देखने के लिए क्या तुम मुझे भी छोड़ने को तैयार हो?” वह बोली, “मुझे दोनों चाहिए। दुनिया भी देखनी है और आप भी चाहिए।” उसके पति ने अपना मुँह खोलकर उसे दुनिया दिखाई और उसे सोने की अँगूठी देते हुए बोला, “जिस बूढ़ी स्त्री के कहने पर तुम यह सब कर रही हो, वह मेरी माँ की नौकरानी है। मेरी माँ एक नरभक्षी है। उसने मेरे लिए जिस लड़की को चुना था, उससे शादी न कर मैंने तुमसे की। वह तुम्हें मुझसे अलग करना चाहती है, ताकि वह तुम्हें खा सके। अपने षड्यंत्र में कामयाब होने के लिए उस बूढ़ी स्त्री ने तुम्हें धोखा दिया है। उन्हें लगता कि अगर मेरी माँ तुम्हें खा जाएगी तो मैं उनकी चुनी हुई लड़की से विवाह कर लूँगा। इसलिए मैं तुम्हें यह सोने की अँगूठी दे रहा हूँ। इसे सँभालकर रखना। अगर यह तुम्हारे पास रहेगी तो कोई भी बुरी ताकत तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकेगी। अगर अँगूठी तुमसे खो गई तो तुम मुसीबतों में घिर जाओगी। इस अँगूठी के प्रभाव से तुम मुझे छह साल बाद मेरी माँ के घर मुझे पाओगी। अब मुझे जाना होगा। सावधान रहना और इस अँगूठी को खोना मत।” यह कहकर पति नदी में चला गया।

चंपावती को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह रोने लगी। जंगल में घूमते-घूमते वह रोती रही और अँगूठी को सीने से लगाए छह साल बीतने का इंतजार करने लगी। उसके पति की माँ ने उसे कई तरह से छलने की कोशिश की, पर अँगूठी ने उसकी रक्षा की। छह वर्ष बीत चुके थे और अचानक एक दिन चंपावती की मुलाकात अपने पति से हुई। वे फिर से साथ रहने लगे, लेकिन उसकी सास यह देखकर क्रोधित हो उठी। जैसे ही चंपावती अपने पति से मिली, उसकी अँगूठी गायब हो गई। पर चूँकि उसका बेटा चंपावती के साथ था, इसलिए सास उसको किसी तरह से नुकसान नहीं पहुँचा पाई। एक दिन उसने एक पत्र लिखा—“यह मेरी सबसे बड़ी दुश्मन है। इसे खत्म कर दो, पर इसके मांस का एक टुकड़ा मुझे भेज देना।”

उसने वह पत्र चंपावती को दिया और उसे एक राक्षस के पास भेज दिया। सास के आदेश का पालन करने के लिए पति को बिना बताए वह उस राक्षस को पत्र देने चली गई। जब पति घर आया तो उसे कुछ शक हुआ और वह चंपावती के पीछे-पीछे गया। उसने उसके हाथ से पत्र छीन लिया और उसे पढ़ा। पत्र पढ़कर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह घर गया और बिना कुछ कहे उसने अपनी माँ के प्राण ले लिये। उसके बाद वे दोनों दानवों के उस गाँव को छोड़कर चले गए। दूसरे नगर में जाकर अपनी गृहस्थी बसाई और खुशी-खुशी रहने लगे।

(साभार : सुमन वाजपेयी)

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