Thursday, May 9, 2024
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कबीर की चतुराई : तमिल लोक-कथा

Kabir Ki Chaturai : Lok-Katha (Tamil)

मानव विचित्र प्राणी है। अपने को बहुत बुद्धिमान, ज्ञानी समझता है, परंतु अकसर देखा गया है कि उसके पेट में कोई बात पचती नहीं। खासतौर से महिलाओं में कोई भी बात छिपाई नहीं जा सकती। उसमें नमक-मिर्च लगाकर बात को फैलाने में चतुर और तेज हैं महिलाएँ। बात कई से शुरू होती है और अंत में पहाड़ का रूप धारण करके गाँव में हलचल मचा देती है। ऐसी ही एक हास्य-व्यंग्य लोककथा है ‘कबीर की चतुराई।’

तमिलनाडु के एक गाँव में कबीर नाम का एक साधारण व्यक्ति रहता था। एक दिन बाजार से लौटते समय उन्हें खाँसी आ गई। खाँसते-खाँसते उसके मुख से एक पंख निकला। शायद वह अटक गया था, इसलिए भी उसे खाँसी आई होगी। पता नहीं। उसने उस घटना को किसी को नहीं बताया। शाम को जब वह अपने घर के बाहर बैठा हआ था, तब उनकी पत्नी आशा ने उससे पूछा, ‘क्या बात है, यों अकेले क्या सोच रहे हो?’

‘कुछ नहीं!’ पति ने कहा, फिर थोड़ा रुककर बोला, ‘सवेरे जब मैं खाँस रहा था, तब मेरे मुँह से एक ‘पंख’ निकला, वही सोच में पड़ गया।’

‘पंख, वो भी मुँह से! आश्चर्य है।’ पत्नी ने कहा, ‘यह कैसे हुआ?’

‘पता नहीं’, पर तुम किसी को बताना नहीं, ये दुनिया वाले बात का बतंगड़ बना देते हैं। रहस्य को रहस्य ही रहने दिया जाए।’ कबीर ने आशा को चेतावनी दी।

आशा ने कहा, ‘बिल्कुल सही कहते हो तुम। नहीं, नहीं, मैं किसी को नहीं बताऊँगी।

शाम के वक्त जब आशा अपने घर के बाहर बैठी हुई थी, तब उसकी एक सहेली आई। आशा को अकेले बैठा हुआ देख पूछने लगी—‘क्या बात है आशा? क्या सोच रही हो?’

बस फिर क्या था। महिलाओं में बात पचती नहीं है। कुछ भी रहस्य की बात हो तो निश्चित रूप से अपनी सहेलियों में बाँटती है। आशा ने भी वही किया। पति के लाख समझाने पर भी रहस्य की बात अपनी सहेली से बता दी—

‘कल मेरे पति के मुँह से एक पंख निकला था।’

‘पंख! चिड़िए का पंख या चिड़िया निकला!’ सहेली ने पूछा।

‘नहीं-नहीं, तुम किसी को यह बात बताना नहीं सहेली, पति ने मना किया था।’ आशा से रहस्यपूर्ण कहा।

सहेली हामी भरती हुई वहाँ से यह कहकर निकल पड़ी कि वह बाजार जा रही है, तरकारी खरीदनी है। आशा चुप रही।

मार्केट में फल और तरकारी बेचने वाली महिला से आशा की सहेली ने मोल-भाव करते हुए बता दिया कि ‘पता है तुम्हें, अभी मैं आशा से मिलकर आ रही हूँ, उसने कहा कि उसके पति के मुँह से पक्षी निकलते हैं।’

सब्जी बेचने वाली महिला ने आश्चर्य के साथ पूछा, ‘क्या कहा? मुँह से पक्षी निकलते हैं।’ वह जीवित था क्या?’

‘हाँ, पर तुम किसी को नहीं बताना।’

‘ठीक है, मैं क्यों बताने लगी।’ बेचने वाली महिला अपने काम में लग गई।

उस दिन शाम को कई लोग मार्केट के पास मिले, सब को बात फैल गई थी कि कबीर के मुँह से पक्षी निकलते हैं। अब दुनियादारी में लोगों का मुँह कैसे बंद करे। बात कबीर के बारे में ही हो रही थी। सबने तय किया कबीर से मिलने का। बात सच है या झूठ। यदि सच हुई तो हम लोग उसे अपने मुँह से निकालकर दिखाने को कहेंगे।

अगले दिन सब कबीर से मिलने उसके घर गए। गाँव के लोगों को देखकर कबीर ने पूछा, ‘क्या बात है? आप लोग मेरे घर क्यों आए हो?’

गाँव का मुखिया बोला, ‘पूरे गाँव में फैला है कि तुम्हारे मुँह से पक्षी निकले हैं। क्या यह सच है?’

अब कबीर को एहसास हुआ कि अफवाएँ फैल चुकी हैं। कबीर विषय की गंभीरता को सोचकर तुरंत बोला, ‘हाँ, मेरे मुँह से पक्षी निकलते हैं। सच है यह।’ गाँव के मुखिया ने कहा, ‘तो निकालकर तुम्हें साबित करना होगा कि यह सच है।’

कबीर ने कहा, ‘ठीक है। पर एक शर्त है।’

गाँव वालों ने मिलकर कहा, ‘क्या शर्त है?’

कबीर ने कहा, ‘यदि मैं पक्षियों को निकालता हूँ तो आप सब को एक-एक पक्षी अपने पेट में रखना होगा।’

यह सुनकर मुखिया और गाँव वाले सहम गए—‘अरे! कौन पक्षियाँ को पेट में रख सकता है। नहीं भाई, नहीं! हम लोग यह काम नहीं कर सकते। आपको कुछ भी नहीं निकालना है मुँह से, न हम लोगों को देखना है। यह सच है या झूठ। चलते हैं कबीर!’ कहते हुए सब लोग वहाँ से निकल पड़े।

देखा कितनी चतुराई से कबीर ने विषय की गंभीरता को पहचाना और उससे निकलने की युक्ति तुरंत आजमाई।

(साभार : डॉ. ए. भवानी)

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