Wednesday, May 8, 2024
Homeलोक कथाएँइंडोनेशिया की लोक कथाएँमैंक हांनाचूं : इंडोनेशियाई लोक-कथा

मैंक हांनाचूं : इंडोनेशियाई लोक-कथा

Maink Haannachun : Indonesian Folk Tale

एक बार वोहारिया नामक एक, मनुष्य सफर कर रहा था। रास्ते में उसे बड़े ज़ोर की भूख और प्यास लगी इसलिए एक टूटे-फूटे कुएं के पास रुककर पहले तो उसने खाना खाया, फिर लोटा लेकर पानी निकालने कुएं के पास चला गया। ज्योंही वह कुएं के पास पहुंचा उसे अंदर से बकरे के चिललाने की आवाज़ सुनाई दी। वोहारिया ने कुएं में झांककर देखा तो एक बकरा वहां गिरा हुआ उसे दिखाई दिया। कुएं में पानी बिलकुल ज़रा-सा था और एक ओर के सूखे हिस्से पर खड़ा होकर बकरा चिल्ला रहा था। वोहारिया अपने साथ की रस्सी लेकर कुएं में उतर गया और बकरे को रस्सी से कसकर बाहर आकर उसे खींचने लगा।

उसी समय कुनामा नामक एक सौदागर वहां से गुजर रहा था। उसके साथ सामान से लदे हुए बहुत सारे ऊंट भी थे। उसने वोहारिया से पूछा-“क्यों जी, यहां नज़दीक ही कहीं पीने के लिए पानी मिलेगा क्या?”

वोहारिया ने जवाब दिया-“इस कुएं में पानी तो है पर बहुत ही ज़रा-सा है, क्योंकि यह कुआं बकरों का है।

“बकरों का कुआं? इसके मानी?”

“वाह जी, वाह! इतनी-सी बात भी आपकी समझ में न आयी? बकरों के कुएं के मानी हैं, जिस कुएं से बकरे निकलते हैं ऐसा कुआं।” चतुराई से बात बनाकर वोहारिया ने रस्सी खींच ली और बकरे को बाहर निकाल लिया। सौदागर ने जब कुएं से बकरा निकला हुआ देखा तो अचम्भे में भरकर कहा-“यह भी खूब है भई! मैंने तो कभी ऐसा कुआं देखा न था और यह बकरा भी खूब मोटा-ताज़ा दिखाई दे रहा है।”

“हां, ऐसी बात है सही! इस प्रकार के कुएं बहुत कम पाए जाते हैं।”

“पर आप किस प्रकार बकरे निकालते हैं और यहां बकरे बन कैसे जाते हैं?”

“बिलकुल सीधी-सादी बात है। रात को एक बकरे के सींग इसमें डाल देने से दूसरे दिन पूरा बकरा तैयार हो जाता है। फिर मैं रस्सी खींचकर उसे बाहर निकाल लेता हूं। अभी आपने देखा न, इसी प्रकार उसे खींचकर निकाल लेता हूं।”
“बड़ी अचम्भे की बात है! काश! मेरे पास भी ऐसा ही कोई कुआं होता।”
“सभी लोग ऐसा ही सोचते हैं, पर बहुत कम लोग ऐसा कुआं खरीद सकते हैं ।’

सौदागर थोड़ी देर तक सोचते हुए चुपचाप खड़ा रहा। फिर उसने वोहारिया से कहा-“देखो जी, मैं कोई बहुत बड़ा अमीर तो हूं नहीं, फिर भी यदि तुम अपना यह कुआं मुझे दे दो तो मैं तुम्हें अनाज की चार बोरियां दूंगा।”

वोहारिया ने मुंह बनाकर कहा-“चार बोरियां? इतने में तो मैं दो बकरे भी न खरीद सकूंगा।”
“तो फिर मैं सामान से भरे चार ऊंट तुम्हें दूंगा!”

“ऊंह !” वोहारिया ने गर्दन हिलाकर कहा । वह अपने आपसे, सौदागर को भी सुनाई दे, इस तरह कहने लगा–“हर रोज़ एक बकरा यानी एक हफ्ते में सात बकरे मिलेंगे-एक महीने में तीस और एक साल में तीन सौ पैंसठ बकरे मिलेंगे?”

सौदागर ने जब वोहारिया का हिसाब सुना तो सोचा कि कुआं खरीद लेने में ही फायदा है। वोहारिया ने कहा-“अजी, मेरे ऊंट तो देखिये। ऐसे मजबूत ऊंट बहुत कम पाए जाते हैं। फिर भी अब आखिरी बात कहता हूं कि मैं छः ऊंट तुम्हें दूंगा। मेरे पास इतने ही ऊंट हैं। यदि देना चाहो तो कुआं दे दो, नहीं तो मैं चला ।”

वोहारिया ने कुछ सोचकर जवाब दिया-”अच्छा भई, छः ही सही । तुम्हें यह कुआं बहुत ही पसंद आया है तो अपना नुकसान करके भी मैं यह दे देता हूं।’”
कुनामा सौदागर ने खुश होकर कहा-“भगवान तुम्हारा भला करे ।”

ऊंटों की तरफ देखकर वोहारिया ने मन-ही-मन कहा-“भला तो हो ही गया है। और ऊंट लेकर जाने लगा। तब उसे रोककर सौदागर ने पूछा-“अजी, अपना नाम तो आपने बतलाया ही नहीं।”

“मेरा नाम है “मैंक हांनाचूं” वोहारिया ने उत्तर दिया और दक्षिण दिशा की ओर जल्दी-जल्दी चला गया। सौदागर ने वोहारिया का वही नाम सच मान लिया। असल में वोहारिया ने अपना नाम न बतलाकर कहा था–‘मैं कहां नाचूं? पर कहते समय ‘मैंक हांनाचूं’ इस तरह बतलाया था । बेचारा सौदागर इस बात को समझ न सका और उसने वोहारिया का वही नाम सच मान लिया।

शाम होते ही सौदागर ने बकरों के सींग कुएं में डाल दिए और वहीं नजदीक ही सो गया। सुबह बड़े तड़के उठकर उसने कुएं में झांककर देखा पर सींग के बकरे न बने थे। सौदागर को बड़ी फिक्र हुई, पर उसने सोचा कि सींग डालने में कुछ गलती हो गई हो शायद!

दूसरे दिन शाम को उसने और दो बकरों के सींग कुएं में डाल दिए पर उनके भी बकरे न बने। तीसरे दिन गांव में जितने भी बकरों के सींग मिले सब-के-सब लाकर कुएं में डाल दिए और रात-भर कुएं में झांककर पूछता रहा-““बकरो, तैयार हो गए क्‍या तुम?” पर बकरे बने ही न थे तो उनकी आवाज़ कहां से आती!”

दिन निकलते ही सौदागर ने कुएं में सींग वैसे के वैसे ही पड़े हुए देखे तो समझ गया कि उस मनुष्य ने उसे ठगा है। पर अब उसे किस तरह पकड़ा जाए? वह तो कभी का चला गया था। आख़िर जिस ओर वोहारिया गया था उधर की ओर जाने से शायद उसका पता लग जाए, यों सोचकर वह दक्षिण दिशा की ओर चला।

दिन-भर वह चलता रहा। आखिर शाम के समय वह एक गांव में पहुंच गया। वहां चौराहे पर उसे बहुत से लोग दिखाई दिए। इन लोगों को शायद उस ठग का पता मालूम होगा, ऐसा सोचकर सौदागर ने उनसे पूछा-“’क्यों जी, आपको ‘मैंक हांनाचूं’ के बारे में मालूम है क्या?”

सभी लोग अचम्भे से सौदागर की ओर देखने लगे। आखिर उनमें से एक ने कहा-“हां-हां, मालूम क्यों नहीं? आप यहीं पर नाच कीजिए।” और कुछ लोग ढोलक बजाने लगे।

“यह क्या कह रहे हैं आप? मैंने पूछा कि ‘मैंक हांनाचूं” के बारे में आप कुछ जानते हैं क्या?”

“जानते क्यों नहीं? हम सभी लोग जानते हैं। आप यहीं पर नाच कीजिए। हम बाजे बजाते हैं।” वे सब बाजे बजाने लगे।

सौदागर को बड़ा गुस्सा आया। उसने सोचा-“कैसे वाहियात लोग हैं! मैं ‘मैंक हांनाचूं’ के बारे में पूछ रहा हूं तो ये मुझसे नाचने को कह रहे हैं। पाजी कहीं के!” गुस्से में भरकर सौदागर जल्दी-जल्दी वहां से चला गया।

रात को रास्ते में एक पेड़ के नीचे वह सो गया और दिन निकलने के पहले बड़े तड़के ही वह फिर चलने लगा। सुबह होते ही वह दूसरे गांव में पहुंचा। वहां बाज़ार में पहुंचकर उसने चिल्लाकर पूछा-“मैंक हांनाचूं के बारे में आपको मालूम है क्या?”

वहां के सभी लोग सौदागर के पास इकट्ठे हो गए और बोले-“हां-हां, मालूम क्‍यों नहीं? आप यहीं नाच कीजिए। गांव के सभी लोग यहीं नाच किया करते हैं।” और उन सबने तालियां बजाना शुरू कर दिया।

शर्मिंदा होकर सौदागर वहां से भी भाग लिया। और भी दो-तीन गांवों में वह गया और “मैंक हांनाचूं’ के बारे में उनसे पूछा, पर हर जगह लोगों ने उसे नाचने के लिए ही कहा । बेचारा सौदागर! उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि लोग उसे नाचने को क्‍यों कहते हैं! उसने सोचा कि देहात के लोग इसी तरह बदमाश होते हैं शायद । वह शहर जा पहुंचा। शहरों में भी उसे वही जवाब मिला इसलिए निराश होकर जब वह वहां से जाने लगा, तभी सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और न्यायाधीश के सामने उसे ले जाकर कहा-“यह मनुष्य लोगों को ‘मैंक हांनाचूं? पूछता है और जब लोग नाचने की जगह बतलाते हैं तो न नाचकर भाग जाता है।”

न्यायाधीश के पूछने पर जब सौदागर ने पूरा किस्सा सुनाया, तो न्यायाधीश ने पूछताछ करवाई और उसे मालूम हो गया कि वोहारिया नाम का एक आदमी छः ऊंट लेकर गांव में आया है। न्यायाधीश ने समझ लिया कि यही वह ठग है। और एक सिपाही को उसके यहां भेजकर कहलाया कि मैं क्या करूँ नाम का एक मनुष्य तुमसे मिलना चाहता है और वह न्यायाधीश के पास बैठा हुआ था। जल्दी चलो।

वोहारिया उसी वक्‍त न्यायाधीश के पास दौड़ता हुआ आया। न्यायाधीश ने जान-बूझकर उससे पूछा-“क्या काम है आपका?”
वोहारिया ने कहा-“आपको “मैं क्या करूँ के बारे में मालूम है?”

“हां-हां, अच्छी तरह मालूम है। तुम अब चुपचाप इनके सभी ऊंट लौटा दो नहीं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी।”

वोहारिया ने देखा कि न्यायाधीश सभी बातें समझ गया है। ज्यादा गड़बड़ी न करते हुए उसने सौदागर के ऊंट उसे वापस दे दिए और उससे माफी मांग ली। सौदागर ने न्यायाधीश को अनेक धन्यवाद दिए और अपने ऊंट लेकर वह जाने लगा। बाज़ार में पहुंचते ही सभी लोग “यहीं नाचो, यहीं नाचो” कहकर उसके पीछे पड़ गए। मगर इस समय सौदागर को गुस्सा नहीं आया बल्कि ऊंट मिल जाने की खुशी में वह सचमुच ही वहां नाचने लगा और लोग तालियां बजाने लगे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments